भयावह है अधर्म को धर्म बनाना

जहाँ हिंसा हो, क्षमा का स्थान न हो , असत्य हो ,लज्जा भंग हो , श्रद्धा न हो ,इन्द्रियों में संयम न हो ,दान ,यज्ञ ,तपऔर ध्यान न हो वहा धर्म की स्थापना नही हो सकती ,अधर्म को धर्म के रूप में प्रचारित और स्वीकार करना सम्पूर्ण श्रष्टि के लिए विनाशकारी है , सम्पूर्ण मानव जातिको ये जान लेना चाहिए प्रकृति का एक मात्र धर्म है जिसमे कहा जाता है 

“ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः.

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भागभवेत .

सभी सुखी होंवे सभी निरोगी रहे ,सभी कल्याण देखे ,किसी को भी दुःख का भागी न होना पड़े .

यहाँ सभी सुखी होंवे का अर्थ यह नहीं है कि मात्र मानव ही यहाँ सुखी रहने का अधिकारी है , यहाँ का अर्थ है की प्रकृति में जन्म लेने वाली जिनमे स्पंदन है वो भी सुख से रहें उन्हें कोई कष्ट न हो ,वो भी निरोगी रहे उनका भी कल्याण हो ,किसी को भी दुःख न पहुंचे ,यह भाव जहा भी है वही धर्म निवास करता है ,अधर्म को पोषित करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए कि अपने सुखों के लिए जिस तरह से प्रकृति के खिलाफ होते जा रहे है उनको इसका भयानक दंड भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए ,जितनी जल्दी हो सके प्रकृति के एक मात्र धर्म “सनातन” को स्वीकार कर लेना चाहिए .

                अधर्म को त्याग कर बने “त्यागी”

एक मात्र यही कारण था “जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी“ का सनातन को स्वीकार करना जो कभी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी हुआ करते थे , उन्होंने समय से अधर्म को जन लिया और सत्य ‘सनातन” धर्म को अपना लिया , जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी ने जाना कि “तर्क विहीनो वैध: लक्ष्मणहीनश्च पंडितो लोके , भाव विहीनो धर्मो नूनं हस्य्न्ते त्रिन्यापी “ अर्थात तर्क विहीन वैध ,लक्ष्ण विहीन ज्ञानी और भाव रहित धर्म इस जगत में हंसी के पत्र बनते है ,अधर्म को त्याग कर धर्म से जुड़े त्यागी ने ये भी जाना कि

“अता हिंसा क्षमा सत्यं ह्रश्रीद्वेंद्रिय संयामा:”

दान मिज्या तपो ध्यानं दशकं धर्म साधनम

अहिंसा ,क्षमा ,सत्य ,लज्जा ,श्रद्धा ,इन्द्रिय संयम ,दान ,यज्ञ ,तप और ध्यान ये दस धर्म के साधन है , अधर्म से बैचेन त्यागी ने कई चरणों में अधर्म को उजागर करने के प्रयास किये परन्तु अधर्म में जो पोषित था वही बहार निकला था जिसमे उनको सीधे फ़तवा दिया गया कि अधर्म के बारे में कोई भी धर्म संगत बात किया तो सर को कलम कर दिया जायेगा , सिद्ध हो जाता है कि जहा दया और क्षमा का ही स्थान न हो वहा एक मात्र अधर्म ही पनप सकता है

क्या है अधर्म

जहा हिंसा है वहा अधर्म है ,जहाँ दया और करुना का भाव नही वहां अधर्म है ,जहाँ प्रकृति को नष्ट किया जाता है वहां अधर्म है ,जहा बेजुबानों पर अत्याचार है वहां अधर्म है , जहाँ स्त्रित्व को मात्र भोग का साधन माना है हो वहा अधर्म है , इस मार्ग का अनुसरण करने वाले वाही लोग हो सकते है जिनके अंदर कट्टरता और जेहादी मानसिकता है .

Leave a Reply